जमशेदपुर : अक्सर सुनने की क्षमता में कमी को बुढ़ापे का एक स्वाभाविक प्रभाव माना जाता है और इसलिए आम तौर पर इसका इलाज नहीं किया जाता है। भारत में 63 मिलियन लोग (6.3 प्रतिशत) गंभीर सुनने की समस्या से पीड़ित हैं। वास्तव में हियरिंग लॉस वाले केवल 14 प्रतिशत लोग ही श्रवण यंत्र का उपयोग करते हैं और जिन्हें एम्प्लीफिकेशन से लाभ मिल सकता है। हालांकि एक बच्चे में हियरिंग लॉस की पहचान जल्दी करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है। क्योंकि यह उसके स्पीच और भाषा के विकास को प्रभावित कर सकता है। श्रवण हानि अक्सर डिमेंशिया, सामाजिक अलगाव और अवसाद जैसे अन्य गंभीर मुद्दों से जुड़ी होती है। वहीं हियरिंग लॉस के उपचार के साथ-साथ इसकी रोकथाम भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। भारी मशीनरी, आग्नेयास्त्रों और नजदीकी दूरी पर आतिशबाजी से होने वाले श्रवण-संबंधी खतरे सभी को ज्ञात हैं। यहां तक कि संगीत समारोह या नाइट क्लबों में जाना या संगीत-आधारित फिटनेस क्लास में भाग लेने जैसी नियमित गतिविधियां भी खतरनाक स्तर की ध्वनि उत्पन्न कर सकती हैं। यह याद रखना चाहिए कि हियरिंग लॉस किसी भी उम्र में हो सकता है। जन्म के समय या शिशुओं और बच्चों में विकसित होने वाली हियरिंग लॉस अतिरिक्त चिंता का विषय है। यदि समय रहते इसकी पहचान नहीं की गई और इसका उपचार नहीं किया गया तो यह विकास संबंधी चुनौतियों का कारण बन सकता है। क्योंकि बोली जाने वाली भाषा को समझने के लिए सामान्य रूप से सुनने की आवश्यकता होती है और फिर बाद में स्पष्ट रूप से बोलने के लिए भी इसकी जरूरत पड़ती है। जिन बच्चों में बोलने और भाषा संबंधी विकार साढ़े पांच साल की उम्र के बाद भी बने रहते हैं। उन्हें ज्यादा सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिसपर ध्यान देने की अधिक जरूरत होती हैं। स्पीच डिसऑर्डर के प्रकारों में हकलाना या तुतलाना, अप्राक्सिया (आदेश पर सामान्य हरकतें करने में असमर्थता) और डिसार्थ्रिया (बोलने में कठिनाई) शामिल हैं। स्पीच डिसऑर्डर के कई संभावित कारण हैं। जिनमें से मांसपेशियों की कमजोरी, मस्तिष्क की चोटें, जन्म के बाद होने वाली विकृति से संबंधित रोग, ऑटिज्म और सुनने की क्षमता में कमी शामिल हैं। बोलने से जुड़े विकार किसी भी व्यक्ति के आत्मसम्मान और उसके जीवन की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। वहीं टीएमएच ईएनटी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट सह एचओडी डॉ विनायक बरुआ ने कहा कि शहर के बिस्टुपुर स्थित टाटा मेन हॉस्पिटल में नियमित रूप से नवजात शिशु की स्क्रीनिंग टेस्ट करते हैं। जिसे ओटोएकॉस्टिक एमिशन या ओएई टेस्ट कहा जाता है। इसके अलावा हमारे पास अत्याधुनिक एबीईआर (ऑडिटरी ब्रेनस्टेम इवोक्ड रिस्पॉन्स ऑडियोमेट्री) टेस्ट भी है। हम टीएमएच में स्पीच और लैंग्वेज संबंधी समस्याओं का समाधान भी करते हैं। साथ ही हमारे सीएचआईसी (सुनने में असमर्थ बच्चों के लिए केंद्र) केंद्र में भी है और जो टाटा स्टील से संबद्ध एक गैर सरकारी संगठन है।
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